मेरे मित्र सूची मे शामिल मुस्लिम मित्र मेरी सोच से वाकिफ हैं और जानते भी हैं कि वे इस पोस्ट से परे हैं ।
योग को ले कर मजहबी नेताओं ने जो भड़काऊ बयान दिये, TRP लूटे, सबके लिए काफी मनोरंजन रहा । लेकिन इस बात का एक बुनियादी पहलू मेरे समझ में जो आ रहा है, पेश कर रहा हूँ । Canvas बड़ा है इसलिए कनैक्शन थोड़े लूज लग सकते हैं । कृपया धैर्य से पढ़ें और सोचें, या फिर मर्जी आप की ।
यूं देखने जाये तो इन मुस्लिम राजनेताओं को पहले से पता होगा ही कि उनके विरोध से योग का कार्यक्रम रद्द तो होने से रहा । ये भी पता होगा कि मुस्लिम समाज में भी सभी नहीं सुननेवाले क्योंकि योग तो जानी मानी विद्या है, सभी इसके फायदे जानते है । सोशल मीडिया में और मुख्यधारा में भी मज़ाक उड़ाया जाएगा ये भी अंदेशा होगा, तो फिर क्यूँ?
एक वाक्य को देखिये तो इसके पीछे की मनोभूमिका समझ आने लगेगी । “कोई भी जीत छोटी नहीं, कोई भी हार बड़ी नहीं’ । दर उल इस्लाम और दर उल हर्ब आप को पता ही होगा । जो मुल्क इस्लामी नहीं वो इस्लाम के शत्रुओं का है (दर उल हर्ब) और उसे इस्लाम के सत्ता में लाना इस्लाम का ध्येय होता है । यह निरंतर संघर्ष के सिवा अशक्य है और हर संघर्ष रण नहीं होता, ना ही उसमें हिंसा होती है । लेकिन संघर्ष होता है और उसमें हार जीत तो होती रहती है ।
उत्पात के महागुरु Saul Alinsky के नियम सब जगह लागू होते ही हैं । समाज में संघर्ष पैदा कैसे किए जाते हैं उस पर उनका सुंदर विवेचन है । उनके 7 वे और 8वे नियम यहाँ लागू होते दिख रहे हैं -लोगों को interested रखने के लिए हमेशा नया कुछ करते रहिए ताकि लोग साथ देते रहेंगे । (7)और – विरोधियों को सांस न लेने दें, हमेशा कुछ नया तरीका ढूंढ निकाले उनपर हमला करने का । अगर आप के एक तरीके को वे समझ जाते हैं तो कुछ और नया, अनपेक्षित करिए ।(8)
इन दोनों नियमों को हम रोज चरितार्थ होते देख ही रहे हैं । कहीं न कहीं किसी न किसी बहाने ये इस्लाम को खतरे में ला देते हैं । कभी बांग देनेवाले लाउड स्पीकर की आवाज जान बूझ कर बढ़ाने का मामला हो या आरती के लिए लगाए लाउडस्पीकर उतरवाने हों । सिनेमा के किसी दो मिनट के प्रसंग से या किसी किरदार के नाम पर या कोई सीन पर भावनाएँ आहत करवानी हों या दुनियामें कहीं भी अपने कर्मों के कारण गैर मुस्लिमों के हाथों मार खाये मुसलमानों के लिए सहानुभूति दिखाने के लिए हिंसक मोर्चा निकालना हो । कोई भी हथकंडा जायज है अगर वो इनकी सामाजिक दहशत बरकरार रखता है । ये भी उनके लिए जीत है जो उनके अनुगामियों को interested रखता है । जहां भी विपक्ष टंटा न बढ़ाने की नीयत से मामला छोड़ देता है वहाँ ये अपने जीत समझते हैं और इसी भावना को प्रचारित करते हैं ताकि अनुयायी जुड़े रहें ।
आप ने अगर उनके नेताओं के भाषण देखें या सुने होंगे तो हर अपील इस्लाम के नाम पर होती है तथा हर जीत का श्रेय इस्लाम को दिया जाता है । इसके कारण हर किसी को दर उल हर्ब में अपने कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा हासिल होती है । कभी कोई सामूहिक एक्शन में भाग ले, या फिर कोई बहस में भी इस्लाम का पक्ष defend करें, कहीं तो वो इस्लाम के लिए काम कर रहा है । ये कर्तव्य भावना ही उनके नेताओं के सौदेबाजी की ताकत है ।
अ-घुलनशीलता में ये शक्ति समझते हैं । कैसे, ये समझ लें । परिवेश में ये कुछ न कुछ कपड़े या और कोई चिह्न का अंगीकार करेंगे जिससे इनका मुसलमान होना अधोरेखित होगा । अपने आप में लोग दूरी बनाएँगे ताकि उनसे उलझे नहीं । इसका गलत फायदा भी भरपूर उठाते हैं उठानेवाले, बहुतों को कोई न कोई किस्सा तो याद होगा ही । इसको भी एक बड़ी सफलता मानी जाती है जिसकी बाकायदा डींगे हाँकी जाती हैं – मियाभाई से कोई पंगा नहीं लेता भाय ! अपुन कुछ बी करें....
कि मैं झूठ बोलिया?
यहाँ तक अगर आप सहमत हैं तो बहुत सारी situations आप को अपने आप समझ में आएगी, in fact, ये पढ़ते पढ़ते ही कई प्रसंग स्मरण - समझ में आ गए होंगे ।
अब आते हैं इस लेख के शुरुआती टॉपिक पर – योग को किए विरोध पर । आप को सवाल हो सकता है कि इसमें क्या पाया? तो इसका जवाब यूं कि अलग रहकर हमने सरकार को कुछ concession करने को मजबूर किया – ॐ को निकालने तथा सूर्यनमस्कार को निकालने के लिए ये हिंदुस्तान के हिंदुओं की हिन्दू सरकार तैयार हुई फिर भी हम अड़े रहे कि हम नहीं करेंगे । योग हिंदुस्तान के हिदुओं का है और ॐ उनके लिए सब से पवित्र है उसे भी हम ने निकलवाया ये इस्लाम की ताकत है । ये इस्लाम की जीत है ।
तो आप समझ ही गए होंगे कि अविरत संघर्ष क्यों और कैसे जारी है । संघर्ष के लिए इस्लामी पारिभाषिक शब्द से आप परिचित होंगे ही – जिहाद ! लक्ष्य के लिए किया गया हर संघर्ष आप इस नजरिए से जब समझेंगे तो समझ आएगा कि मिलनसार, अच्छे दोस्त वगैरा सब गुण होते हुए भी ये समाज मुख्यधारा में घुलता क्यूँ नहीं है ।
संघर्ष के लिए एक और शब्द या कहो मुहावरा, प्रचलित है – जद्दोजहद !
न जाने क्यूँ मुझे ये शब्द हमेशा ‘जिद और जिहाद’ सुनाई देता है । आप को?
उम्मीद है आप ने इस नोट को पूरा पढ़ा होगा और ये भी उम्मीद है कि आप bore नहीं हुए होंगे । आप का विचार जरूर रखें, चर्चा करेंगे । हाँ, अगर आप इस विचार से सहमत हैं तो क्या इसे शेयर करेंगे?
----------------------------------------------------------
‘उमर का सुलहनामा’ क्या होता है, आप को पता है? इस पर मैंने एक विस्तृत नोट लिखी थी । आप ने अगर पढ़ी न हो तो अवश्य पढ़नी चाहिए । लीजिये ये लिंक http://belihaaj.blogspot.in/2015/09/1000.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें