कसाई और ईसाई - दोनोंने हिंदुओं को भ्रष्ट कर के अपनी संख्या कैसे बढ़ाई ये साधारणत: सभी जानते ही हैं । उसके कुछ विशेष पहलूओंपर यह पोस्ट है ।
बरगलाकर गौमांस खिलाना, पानी में गौमांस या कोई वर्जित मांस का टुकड़ा दाल कर अगर वो पानी पिया जाये तो सामने आ कर "तुम अभी हिन्दू नहीं रहे" की घोषणा करना इत्यादि उनके फेवरिट हथकंडे थे, राइट? तलवार के बल से भी मतांतरण आम बात थी ।
नेताजी पालकर > महम्मद कुली खान > नेताजी पालकर की कहानी भी पता होगी? छत्रपति शिवाजी के एक बड़े सेनापति थे । मतभेद के कारण मनमुटाव हुआ, फिर औरंगजेब द्वारा पकड़े गए और जबरन कन्वर्ट भी किए गए । लेकिन जब मराठा साम्राज्य में मुहिम पर लौटे तो फिर से हिन्दू होने के मंशा से शिवाजी महाराज से जा मिले और शिवाजी महाराज ने शास्त्रियों से सलाह मशवरा कर के दुबारा हिन्दू धर्म में ले लिया । नेताजी "प्रति शिवाजी" माने जाते थे, और ऐसा साथी खोना शिवाजी महाराज नहीं चाहते थे ।
लेकिन अपनों को दुबारा अपनाना यह दूर की सोच हमारे ही धर्म के रखवालों ने नहीं दिखाई, अन्यथा ताजा ताजा जबरन कन्वर्ट हुए लोगों को फिर से हिन्दू कर लेते तो कम से कम नुकसान तो नहीं होता। उन्होने तो अपनी मूर्खता के कारण ही शत्रु सेना की संख्या बढ़ाई ।
आज शाकाहार मांसाहार का जो झगड़ा दिख रहा है ये यही दिखा रहा है कि ना हम उन भूलों से कुछ सीखे हैं न शिवाजी महाराज से । भाई, शाकाहारी ही शुद्ध हिन्दू नहीं होता और मांसाहारी कोई कम धार्मिक हिन्दू नहीं होता। वैसे भी, मांसाहार मुगलों की ही देन नहीं है, इस भूमी और इसी संस्कृति से जुड़ा है । लुब्धक एक संस्कृत शब्द है और पुरानों में भी पाया जाता है । क्या अर्थ है जरा समझ लें ।
महाभारत की एक कहानी है - अभी नाम सहित संदर्भ याद नहीं लेकिन मैंने पढ़ी है और वो भी महाभारत में ही - एक मुनि साधना कर रहे थे, एक पाँव पर खड़े हो कर । अचानक ऊपर से एक पक्षिणी ने मलत्याग किया जो इन्के ऊपर गिरा। मुनिश्री ने क्रोध से ऊपर देखा तो पक्षिणी जलकर भस्म हुई । मुनि फूले न समाये , सिद्धि मिली ! फिर गाँव में गए भिक्षा मांगने । एक द्वार पर खड़े हो कर आवाज लगाई तो गृहस्वामिनी ने देर कर दी। मुनि ने उसे भी क्रोध से घूरा तो उसने जवाब दिया कि भस्म होने के लिए मैं कोई पक्षिणी नहीं । मुनि अवाक हुए, उसके पैर छूए । अपनी गुरु बनने के लिए आग्रह किया तो उसने अपने से योग्य व्यक्ति के पास भेजा । गाँव का खटीक । मतलब, यह व्यवसाय तब भी था ।
वैसे भी, हिंदुओं में कभी इस बात को ले कर झगड़ा हुआ तो नहीं था आज तक । मुंबई में जो हुआ उसमें शिव सेना और मनसे के बाजू से दूसरे हाथ से ताली का आवाज जरा ज्यादा था, लेकिन ताली बजने के लिए पहला हाथ मौजूद था उसे किसी ने देखा नहीं । आवाज होते ही दूसरे हाथ पर ही फोकस हुआ । उसके स्थानिक पहलुओं से नजर हटाकर दोनों ठाकरे बंधुओं को स्याह रंग में दर्शाने का प्रयास हुआ और दुख की बात है कि सफल हुआ । स्थानिक गुजराती जैनोंपर से फोकस हट कर पूरे जैन समाज के विरोधी दिखाये गए ।
दोनों सेनाओं का प्रदर्शन घटिया था और उसके सिर्फ कसाइयों ने मजे लिए और दोनों को और उकसाया । जैसे सर्कल में झगड़ते मुर्गों को उत्साहित करते हैं ।
खैर, वेज वि नॉन वेज का झगड़ा बहुत ज्यादा हुआ । इस बात पर, वेज वालों को भी समझना है कि नॉन-वेज वाले हिन्दू भी काफी हैं, और वो नॉन वेज खाने से वे आप से कमतर दर्जे के हिन्दू नहीं हो जाते । और कुछ नए नहीं हैं, सदियों से नों वेज हैं । झगड़े का कारण नहीं है, झगड़ा लगाया गया है । झगड़ते ही रहोगे तो टूटोगे, सभी आसानी से मारे जाओगे । हमारे शत्रु वही चाहते हैं ।
वैसे, कोई जैन बंधु बताएगा कि कोई जैन राजा ने कभी किसी मुसलमान आक्रांता से कोई लड़ाई जीती थी?
साथ चलने की कीमत मांगने से पहले, अकेले चलने का नुकसान समझ लो ।
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