चटपटी और निरर्थक चर्चा के लिए शाकाहार और मांसाहार विवाद एक evergreen subject है । जितना मांसाहार जिह्वालौल्य है उतना ही यह विवाद जिह्वा लड़ाने के काम आता है।
एक व्यावहारिक बात कहता हूँ । मांसाहार दुनिया में है और रहेगा जब तक उसके उपभोक्ता मौजूद हैं । मैं और आप एक दूसरे से विवाद कर के उसे मिटा नहीं सकते । मांसाहारी आप को मांसाशन की दावत नहीं दे रहा है, और आप उसे शाकाहार का महत्व अलग से समझा ही नहीं सकते क्योंकि वो शाकाहार लेता ही हैं, उसकी रुचि तथा लाभ जानता है ।
ये जान लीजिये कि मांसाहार एक बहुत बड़ा व्यापार है । भारत में ही रोज का करोड़ों का व्यापार है, हो सकता है अब्जों का भी हो । और ये करोड़ों जिनके जेब से जाते हैं वे ज़्यादातर हिन्दू ही हैं ।
सिर और छाती पीटना है तो कृपया और कहीं जाएँ । मैं कुछ व्यावहारिक बात कर रहा हूँ । चिकन, भेड़ बकरी पालकर सप्लाइ करनेवाके ज़्यादातर हिन्दू हैं । चिकन में कई जगहों पर विधर्मी भी हैं लेकिन भेड़ बकरियाँ पालनेवाले गड़रिये ज़्यादातर हिन्दू हैं । ये हुए रॉ मटिरियल सप्लायर ।
खानेवाले याने end user या consumer भी ज़्यादातर हिन्दू, लेकिन बीच का आवश्यक घटक है जो कसाई वो हिन्दू नहीं है । क्या आप को पता है इस लाइन में कमाई कितनी है? और क्या आप को यह भी पता है कि हिंदुओं में भी यह काम करनेवाली एक जाती मौजूद है जिसे खटीक कहते हैं ? आज इस समाज के युवा अपने परंपरागत धंधे को पता नहीं कौनसे शर्म के मारे छोड़कर कहीं और हाथ पैर मार रहे हैं जहां इतने सफल भी नहीं रहे हैं ।
अगर मांसाहारी हिन्दू शाकाहारी होने से रहे तो कम से कम ये देखे कि अपने पैसों से बृहद हिन्दू समाज के संवर्धन में योगदान दें । आज अगर खटीक सम्पन्न नहीं है तो कल वो आरक्षण के लाइन में खड़ा होगा, बोझ में बढ़ोतरी करेगा । अगर हिन्दू यह आर्थिक शृंखला को मजबूत करे तो उसका स्तर सुधरेगा और वो याचक नहीं, दाता होगा क्योंकि इस धंधे में अच्छी कमाई है । समृद्धि आती है तो अपने साथ अक्ल भी लाती है नए नए काम करने की । अपने आप समाज में पांत से पांत मिलाकर बैठेगा, कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा। क्या आप को कोई आपत्ति है अगर इस धंधे से सम्पन्न हुआ हिन्दू खटीक आप के साथ एक टेबल पर बैठे? चोरी या काला बाजार तो नहीं कर रहा है !
पैसे तो खर्च होंगे ही, आप के दिमाग खाने से मांसाहारी हिन्दू खाना नहीं छोड़नेवाले । कम से कम उन पैसों से हिन्दू ही अधिक सशक्त होगा । वैसे भी जब भी विधर्मियों से पाला पड़ा है, हिंदुओं के सब से प्रखर सैनिक यहीं से आए हैं । अगर हम उनकी संपन्नता में योगदान देते हैं तो अपने सैनिकों का ही यथोचित सम्मान करते हैं । समाज की एक दूसरे पर अवलम्बिता जहां बढ़ती है वही समाज अधिक एकत्रित और सशक्त भी होता है यह अनुभूत तत्व है ।
अंत में इतना ही कहूँगा कि शौक से शाकाहारी रहिए , बस मांसाहार का वृथा विरोध कर के झगड़े मत बढ़ाइए । मांसाहार का वॉल्यूम देखें तो नदिया की बाढ़ है, आप के टूटपुंजिये दीवार से नहीं रुकनेवाली । बेहतर होगा कि नहरें निकाल कर अपने खेती को सींच लें; जो अभी सूख रही है । फसल आखिर में आप के भी काम आनेवाली है ।
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