रविवार, 20 सितंबर 2015

UNCOVERING DEFRAUDED INDIA - भारत के साथ छलावे का पर्दाफाश - 2


कल इस विषय पर पहिली पोस्ट लिखी थी ।
बात उठाई थी इतिहास को विकृत कर के shame game के तहत शर्म के बोझ तले हिंदुओं के आत्मसम्मान को दबाने की। ये रही लिंक अगर न पढ़ी हो 
राजा राम मोहन रॉय के उठाए मुद्दों पर जरा बात करें ।
1 सतीप्रथा का अंत, जिसके लिए वे सब से प्रसिद्ध हैं - वे और William Bentinck
2 Rigidity of Caste System कठोर जाती व्यवस्था
3 Polygamy बहुपत्नीत्व
4 Child Marriages बाल विवाह
सती प्रथा को ले कर बचपन की कथाएँ जो याद हैं वे दिल दहला देने वाली थी। विधवा स्त्री को बोझ मानकर चिता में धकेला जाता था, क्या होता है यह समझ न आए इसलिए नशीले पदार्थ खिलाये पिलाये जाते थे और फिर भी अगर आग से वो भागने की वो कोशिश करे तो लंबे लंबे लकड़ियों से उसे अंदर वापस धकेला जाता था । उसकी चीखें न सुनाई दें इसलिए वाद्य ज़ोर शोर से बजाए जाते थे । चित्र भी थे - फोटो नहीं, 20 वी सदी के किसी चित्रकार ने कल्पनासे बनाए कृष्ण धवल चित्र । और ऐसी दक़ियानूसी प्रथा से - भारत की - हिन्दू स्त्रियॉं को मुक्ति दिलानेवाले उनके तारनहार भारत माता के सपूत राजा राम मोहन रॉय ।
यही पढ़ा था मैंने । और मेरी पढ़ाई कान्वेंट की नहीं है । वहाँ क्या पढ़ाया जाता होगा, पता नहीं ।
आज सोचता हूँ, याने उन दिनों विधवाएँ होती ही नहीं थी? पति मर गया तो सीधा इसको भी साथ में pack कर के भेज देते थे क्या? क्या सिर्फ राजघरानों में विधवाओं को जीने का अधिकार था? क्या सभी सती होती थी?
समाज के इतिहास के प्रति अपने पूर्वजों की उदासीनता पर गुस्सा आता है इस वक़्त कि जो बात तर्क से विसंगत तो लगती है लेकिन विश्वसनीय तथ्यों के अभाव में हम निरुत्तर हैं । यह तो यूं हुआ कि किसी सफ़ेद बाल, झुर्रियों से भरे और कमर में दोहरे हो कर लकड़ी के ही बल मुश्किल से चल पाने वाले किसी वृद्ध को कोई रेल्वे का TC age proof के बगैर सीनियर सिटिज़न अस्वीकार कर दें और वो कुछ न कह सके ।
क्या सती होने के उस समाज को या उस घर को कोई सामाजिक प्रतिष्ठा, लाभ इत्यादि थे? क्या उनको महत्व मिलता था? क्योंकि जहां तक दिख रहा है, ऐसे ही चीजों को ध्वस्त करने का जेताओं का स्वभाव रहा है । खैर, सती का मैं समर्थक तो नहीं हूँ, लेकिन यहाँ कुछ बातें अनुत्तरित लगती तो है ।
Caste System को देखते हैं कि अंग्रेजों ने इसमें पाया कि समाज को एक साथ बांधनेवाली कोई बात है तो यह है । इसका विध्वंस हिन्दू समाज के विध्वंस की कुंजी है, अत: इसको कैसे भी कर के ध्वस्त करना है । उस वक़्त उन्होने क्या प्रयत्न किए और उन्हें कितनी सफलता मिली यह मुझे जानकारी नहीं है, लेकिन सालों बाद उन्होने जो किया उसका वर्णन इस चुट्कुले में आप को मिल जाएगा, सुनिए:
खिलौने के दुकान में एक बौराई हुई माता घुस आई । नजर किसी को ढूंढ रही थी। एक सेल्समन पर जा टिकी । गुस्से से लगभग पाँव पटकती वो उसके सामने जा खड़ी हुई और शेल्फ में रखे एक खिलौने के तरफ निर्देश करते उसे पूछा - आप ने ही वो खिलौना मुझे बेचा था न कल? यही कहा था ना कि ये टूट नहीं सकता?
भौंचक्के सेल्समन ने पूछा - कहना क्या चाहती हैं आप? आप के बच्चे ने तोड़ा उसे?
"नहीं", औरत ने जवाब दिया ,लेकिन उसे लेकर अपने बाकी सभी खिलौने चकनाचूर कर दिये उसने !
जातियाँ तो तोड़ नहीं सके, उल्टा तो और पुख्ता कर दी और सभी समस्याओं के लिए उस पर ही आरोप लगाकर समाज को ही तोड़ डाला गदाघात से ! क्या नहीं?
बहुपत्नीत्व की बात करें । किसके बस की बात थी ? जमींदार, रियासतवाले ही होंगे । अब यहाँ एक बात सोचते हैं । यह सत्ताधारी वर्ग मैं विवाह अक्सर घरानों के गठबंधन के लिए होते थे, आज भी वही कारण से होते हैं, बस एक ही हो पाता है वो बात अलग है । तो गठबंधन से पॉलिटिकल ताकत बढ़ती है अगर ....कैसे बर्दाश्त हो ? प्रथा की निंदा करो, समाज की निंदा करो, शर्म के बोझ में इजाफा करो ....
बाल विवाह - क्या कुछ किया भी इनहोने या इनके बाद भी किसी ने? 1980 के दशक में मुझे याद है, INDIA TODAY ने राजस्थान में कोई मुहूर्त को लेकर हजारो बालविवाह हुए थे उस पर कवर स्टोरी की थी। याने होते होते यह सभी कुरीतियाँ समाप्त की तो हिंदुओं ने ही ।
तो इनहोने कुछ खत्म किया भी या नहीं? जवाब हाँ ही है, लेकिन क्या खत्म किया इनहोने?
हिन्दू समाज ! उसकी सामाजिक एकता !
सुधारने के लिए सिर्फ हिन्दू ही मिले इनको? भारत के सत्ताधीश थे, भारत के मुसलमान तो किसी और ग्रह पर तो नहीं न बस रहे थे ।
अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च ।
अजापुत्रं बलिं दद्यात् देवो दुर्बलघातकः॥
कल जब इस विषय पर लिखने का विचार किया था तब शंकित था कि कैसे प्रतिसाद मिलेगा । लेकिन जो मिला और देर रात तक जो पाठकों के बीच मंथन चलता रहा वो देख कर संतुष्टि हुई कि वाकई ‪#‎भारत_बदल_रहा_है‬ !
भारत को तोड़ने का यह खेल आप को समझ आ रहा है तो कृपया इस लेख को शेयर कर के दूसरों को भी सचेत करें । आभार ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें